Thursday, December 8, 2022

 दैनिक ट्रिब्यून के 'तिरछी नज़र' कॉलम में मेरा आज प्रकाशित आलेख

लगाव, भटकाव व ताव की पीढ़ी
एक बात तो माननी पड़ेगी कि अपने नौजवान इतने काबिल हैं कि मोटरसाइकिल को हिला कर बता देते हैं कि टंकी में कितना पेट्रोल है। बुलेट, पल्सर, हार्ले डेविडसन, अपाचे वगैरह मोटरसाइकिलों की एवरेज और स्पीड का कंपनी चाहे कितना ही दावा करे पर वे रहते हैं एक्टिवा चलाने वालियों के पीछे ही। एक तरफ तो हम बढ़ती हुई पेट्रोल की कीमताें की दुहाई देते हैं और दूसरी तरफ ऐन हमारी आंखों के सामने हमारे लाडले दुपहिया-चौपहिया वाहनों को बेमतलब घुमाने में मशगूल हैं। जैसे चांद धरती की परिक्रमा में लीन है, वैसे ही युवा वर्ग या तो नशे की गिरफ्त में है या गेड़ियां मारने में। सब जानते हैं कि वे लड़कियों के पीछे नहीं चलते बल्कि उनका पीछा करते हैं। अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि लड़कियां कितना असहज अनुभव करती होंगी। कई बार यही आगा-पीछा दुर्घटना का सबब भी बन जाता है। लड़कियों द्वारा टोकने पर मनचलों का जवाब होता है- बदनाम तो पेट्रोल हो गया पर भाव तुम्हारे भी कम नहीं हैं।
छेड़छाड़ कर्म में लड़के इतने बिजी हो रहे हैं कि भावी जीवन की चिंता छोड़ते ही जा रहे हैं। मुझे प्राचीन काल की शिक्षा पद्धति याद आने लगती है जब गुरु के आश्रम में लड़के घुड़सवारी, तीरंदाजी, मल्लयुद्ध, संस्कृत भाषा ज्ञान, वेद-उपनिषद् ज्ञान तथा ज्योतिष आदि में पारंगत हुआ करते और इसके अलावा शिकार, तैराकी के साथ-साथ आज्ञापालन आदि के पाठ जीवन में उतारा करते। पर अब उनका ध्यान खंडित है। गलत दिशा में मुड़ चुका है। लड़के जेंट्स टॉयलट की दीवारों पर लिख आते हैं- शालू आई लव यू। अब उन्हें कौन बताये कि क्या शालू वहां पढ़ने जायेगी? जिस भी लड़के को देखो वह ब्रेकअप भी करता रहता है, रोता भी रहता है और दूसरी के लिये ट्राई भी करता रहता है।
लड़कियों में आजकल कैरियर बनाने का जज्बा ज्यादा मुखर है। यह मैं नहीं, प्रत्येक परीक्षा परिणाम कहता है। जब तक कोई लड़का घिसट-पिसट कर कैरियर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा होता है तब तक उनकी सहपाठिनों के बच्चे पैरों पर खड़े होकर चलना सीख जाते हैं। अब इन नवयुवाओं को कौन समझाये कि जो महिलाओं को समझ गये वे संन्यासी बन गये और जो नहीं समझे वे पति बन गये।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी ताहीं देखणिये आये। वा सजधज कै नैं बैठगी। छोरे का बाब्बू बोल्या- बेट्टी अपणे रहन-सहन के बारे मैं किमें बता। रामप्यारी धैड़ दे सी बोल्ली- रहन तो ठीक है पर सहन तो मैं किसे के बाप की भी नीं करती।