Thursday, August 5, 2010

पेड़, पीढ़ी और रक्तदान

" हम सभी अतिथि हैं, लेकिन इस खूबसूरत ग्रह का उपयोग किसी रेलवे स्टेशन के अतिथि गृह की तरह मत करो। यह कुछ समय के लिए हमारा घर है, और यह किसी और के लिए भी घर होगा। इतने कंजूस मत बनो कि " मैं चला जाऊंगा--दस मिनट के बाद मेरी गाड़ी आनेवाली है, तो मैं प्रतीक्षागृह को यदि गंदा छोड़ जाऊं तो क्या हर्ज है?" ओशो
इस धरा को हरा-भरा रखने के लिए आओ हम सब पेड़ लगायें। पर सिर्फ पेड़ लगाना ही काफी नहीं है उनका पोषण भी ज़रूरी है। यह हमारी आदत में शामिल होना चाहिए कि हम पेड़ सींचें। याद है न अपनी दादी - नानी हमेशा पास के पीपल या वाट वृक्ष को पानी दिया करतीं थीं। क्या हम उनका इतना सा भी अनुसरण नहीं कर सकते? अऔर ये भी याद है न कि वे हमेशा खाना खाने से पहले दो-चार गस्से पक्षियों के लिए निकाल दिया करतीं थीं। तभी तो उनके आसपास हमेशा चहचाहट रहती थी। अब अपने आँगन में चिड़िया कहाँ आती है? हो सके तो बुला लो उसे। देखना कितनी रौनक हो जायेगी। ये कमाल आपकी रोटी के दो गस्से कर सकते हैं। बस उन्हें किसी मुंडेर पर रख देना। नहीं तो पेड़ भी रोयेंगे कि उनकी शाखाओं पर किसी ने घोंसला ही नहीं बनाया। पेड़ होंगे तो हमारी पीढियां बचेंगी। आप क्या चाहते हैं? यही न कि वे बची रहें। तो आओ इस सावन में लगाओ एक पोधा और सींचो उसे हमेशा। अपने बच्चों के साथ साथ पेड़ को भी बढ़ते हुए देखो। पेड़ का बढ़ना किसी जादू से कम नहीं है। देखो पृथ्वी कितनी शक्तिशाली और विराट है। पर एक बीज उसे चीर कर yani कि धरा को फोड़ कर उगने लगता है और आसमान छूने की कोशिश करता है। यह देख कर आप का खून बढ़ जाएगा और आपका दिल करेगा कि रक्तदान करें।

ज़िंदा रहे तो फिर मिलेंगे

ज़िंदा रहे तो फिर मिलेंगे

मगर आपसे मिलके इस दिल ने महसूस किया है कि

आपसे मिलते रहेंगे तो ज़िंदा रहेंगे

Tuesday, August 3, 2010

आदमी आदमी को क्‍या देगा

एक ग़ज़ल सबको अच्छी लगेगी

आदमी आदमी को क्‍या देगा
जो भी देगा वही ख़ुदा देगा

मेरा कातिल ही मेरा मुनिसफ़ है
क्‍या मेरे हक में फ़ैसला देगा

ज़िंदगी को करीब से देखो
इसका चेहरा तुम्‍हें रुला देगा

हमसे पूछो ना दोस्‍ती का सिला
दुश्‍मनों का भी दिल हिला देगा

-सुदर्शन फ़ाकिर