Tuesday, September 28, 2010

मेरा प्यारा हैदर

मेरा प्यारा हैदर आज हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर चला गया। आज पता चला कि आदमी हो या कुत्ता, दुःख तो हर किसी की मृत्यु पर एक सा ही होता है। जब हम उसे एक डॉग फार्म से लाये थे तो वो सिर्फ ३० दिन का था। उसकी ब्रीड सैंट बर्नार्ड थी। घर का दरवाज़ा खुला रह जाने पर भी वो कभी घर से भाग कर कहीं नहीं गया। वो ब्रीड का ही सैंट बर्नार्ड नहीं था बल्कि स्वाभाव से भी संत था। बहुत याद आ रहा है हैदर।

Monday, September 20, 2010

ये झंडा उठाने वाले

बहरों को सुनता नहीं चाहे जितना चीख,
एक धमाका चाहिए भगत सिंह से सीख।
आरक्षण के आन्दोलन के नाम पर जो लोग लूट खसूट कर रहे हैं, जनता क़ी संपत्ति को जला रहे हैं उनके खिलाफ बिगुल बजाओ, देर न करो वर्ना नुक्सान ज्यादा हो जाएगा। जो ज़मींदार हैं, संपन्न हैं, राज कर रहे हैं, उन्हें आरक्षण मांगते हुए शर्म आनी चाहिए। ये भीख मांगने के बराबर है। मेहनत से लो मांग कर नहीं। जाति के नाम पर आरक्षण क़ी चर्चा करना भी पाप है। आरक्षण करना है तो हैसियत के आधार पर हो। जिस के घर का चूल्हा गीला है उन पे ध्यान दो, उनके लिए मांगो। किसी को रोटी नहीं मिल रही aour कोई गुल्छरे उड़ाने के लिए झंडा उठाये है। कोई तो समझाए। आने वाली पीढ़ियों से तो डरो।
क्या नेता क्या नीतियाँ, सब कुछ गडमड्ड है। अब तो एक शेयर क़ी लाइन याद आ रही है-
कोई दोस्त है न रकीब है
यहाँ कोन किस के करीब है।
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है।

चौपाल पे टब्बर टोल

Teachers Day पर इतनी सारी टिप्पणिया देख कर दिल खुश हो गया। ब्लॉग भ्रमण के लिए आभारी हूँ।
हिंदी दिवस पर मेरी हास्य पर आधारित पुस्तक 'चौपाल पे टब्बर टोल' का विमोचन हरयाणा क़ी शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने किया है। यह किताब हरयाणा साहित्य अकादमी ने प्रकाशित क़ी है। इसी पुस्तक से एक joke है -
अध्यापक - abc सुना.
बच्चा - जी छोटी सुनाऊं या बड़ी?
इस किताब क़ी खासियत है क़ी हंसा हंसा कर जान ले लेगी। बच के रहना। जितनी जान जायेगी उतनी ही मस्ती होगी। हँसते हँसते जान जाए और चाहिए भी क्या? है न???

Tuesday, September 7, 2010

अध्यापक हमेशा पूजनीय रहेगा

सपनों की सारी गलियां, खवाबों के तमाम रास्ते, चाँद-सितारे chhune की सारी चाहतें, सफलता-सीधी की सारी raahen अध्यापक के द्वार से होकर गुजरती हैं। अध्यापक चाहे संदीपन ऋषि हो, महावीर स्वामी हो, महात्मा बुध हो, अमृत्य सेन हो, मनमोहन सिंह हो या कोई सामान्य अध्यापक, फर्क नहीं पड़ता। सभी अध्यापक सिखाते हैं। कितने हैं जिन्होंने अपने आप a फॉर एप्पल या अ से अनार घर बैठ कर सीखा है? हर युग में अध्यापक की भूमिका है aour रहेगी। किसी ज़माने में तक्षशिला या उज्जयिनी ही उच्चतर शिक्षा के लिए जाने जाते थे अब तो छोटे शहर या गाँव में उच्चतर शिक्षा की सुविधा हो रही है। ये अध्यापक के कारण ही संभव हुआ है। सभी अध्यापकों को नमन है। एकाध अध्यापक की गलती को पूरी अध्यापक श्रेणी पर नहीं थोपा जाना चाहिए। है तो अध्यापक भी मनुष्य ही।