Monday, September 20, 2010

ये झंडा उठाने वाले

बहरों को सुनता नहीं चाहे जितना चीख,
एक धमाका चाहिए भगत सिंह से सीख।
आरक्षण के आन्दोलन के नाम पर जो लोग लूट खसूट कर रहे हैं, जनता क़ी संपत्ति को जला रहे हैं उनके खिलाफ बिगुल बजाओ, देर न करो वर्ना नुक्सान ज्यादा हो जाएगा। जो ज़मींदार हैं, संपन्न हैं, राज कर रहे हैं, उन्हें आरक्षण मांगते हुए शर्म आनी चाहिए। ये भीख मांगने के बराबर है। मेहनत से लो मांग कर नहीं। जाति के नाम पर आरक्षण क़ी चर्चा करना भी पाप है। आरक्षण करना है तो हैसियत के आधार पर हो। जिस के घर का चूल्हा गीला है उन पे ध्यान दो, उनके लिए मांगो। किसी को रोटी नहीं मिल रही aour कोई गुल्छरे उड़ाने के लिए झंडा उठाये है। कोई तो समझाए। आने वाली पीढ़ियों से तो डरो।
क्या नेता क्या नीतियाँ, सब कुछ गडमड्ड है। अब तो एक शेयर क़ी लाइन याद आ रही है-
कोई दोस्त है न रकीब है
यहाँ कोन किस के करीब है।
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है।

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